1775 के आसपास नजीर अकबराबादी अपनी कविता हमें अदाएं दिवाली की ज़ोर भाती हैं, में लिखते हैं कि मगध के मूंग के लड्डू से बन रहा संजोग, दुकां-दुकां पे तमाशे यह देखते हैं लोग| खिलौने नाचें हैं तस्वीरें गत बजाती हैं, बताशे हंसते हैं और खीलें खिलखिलाती हैं| जो बालूशाही भी तकिया लगाये बैठे हैं, तो लौंज खजले यही मसनद लगाते बैठे हैं| उठाते थाल में गर्दन हैं बैठे मोहन भोग| यह लेने वाले को देते हैं दम में सौ-सौ भोग|यह मगध के मिष्ठान्न की उस परंपरा का एक ऐतिहासिक आख्यान है जो यह बताता है कि मगध साम्राज्य में मिठाईयों का कितना महत्व रहा होगा|[और पढ़े]
Tuesday, November 20, 2018
मूंग के लड्डू :मगध के मिष्ठान्न की परंपरा
1775 के आसपास नजीर अकबराबादी अपनी कविता हमें अदाएं दिवाली की ज़ोर भाती हैं, में लिखते हैं कि मगध के मूंग के लड्डू से बन रहा संजोग, दुकां-दुकां पे तमाशे यह देखते हैं लोग| खिलौने नाचें हैं तस्वीरें गत बजाती हैं, बताशे हंसते हैं और खीलें खिलखिलाती हैं| जो बालूशाही भी तकिया लगाये बैठे हैं, तो लौंज खजले यही मसनद लगाते बैठे हैं| उठाते थाल में गर्दन हैं बैठे मोहन भोग| यह लेने वाले को देते हैं दम में सौ-सौ भोग|यह मगध के मिष्ठान्न की उस परंपरा का एक ऐतिहासिक आख्यान है जो यह बताता है कि मगध साम्राज्य में मिठाईयों का कितना महत्व रहा होगा|[और पढ़े]
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