बिहार केवल परवल के उत्पादन में ही नंबर वन राज्य नहीं है बल्कि परवल के सबसे ज्यादा व्यंजन बनाने में भी बिहार का कोई सानी नहीं है| परवल अच्छी तरह से साधारणतया गर्म और आर्द्र जलवायु के अन्दर पनपती है, इस कारण बिहार की धरती परवल की खेती के बिल्कुल मुफीद है| परवल की लता जमीन पर पसरती है और इसकी खेती नदियों के किनारे खूब की जाती है| इस कारण बिहार में परवल की भुजिया, सब्जी से लेकर मिठाई तक खूब बनायी जाती है| कोई भी पर्व हो, त्योहार हो या उत्सव, यह मिठाई हर वक्त मौजूद रहेगी. इसका मीठा और क्रंची स्वाद सभी को खूब भाता है| इसमें विटामिन-ए, विटामिन-बी 1, विटामिन बी-2 और विटामिन-सी के अलावा कैल्शियम भी भरपूर मात्रा में पाया जाता है, जो कैलोरी की मात्रा कम कर कोलेस्ट्रॉल के स्तर को नियंत्रित करता है|[और पढ़े]
Wednesday, November 21, 2018
रसिया : खीर की बिहारी पहचान
बिहार में खाने के बाद मीठे में सबसे ज्यादा पसंद वाला व्यंजन खीर है| खीर ऐसा मिष्ठान्न है जिसे चावल को दूध में पकाकर बनाया जाता है| खीर दूध, चीनी और चावल से बनती है| इसमें सूखे मेवे डालते हैं| देश के अलग अलग राज्यों में खीर को अलग-अलग नाम से जाना जाता है, लेकिन बनाने की विधि कमोबेश एक होती है| बिहार में खीर के साथ जो प्रयोग हुआ है वह चीनी के जगह पर गुड़ या छोवा डालकर बनाया जाने वाला रसिया|[और पढ़े]
बिहार के इस गांव में करते हैं चमगादड़ों की पूजा
वैशाली: क्या चमगादड़ किसी की रक्षा कर सकते हैं? यकीन नहीं हो तो बिहार के इस गांव चले जाइए। यहां के लोगों का विश्वास है कि एक खास जगह हरने वाले चमगादड़ उनकी रक्षा करते हैं। ग्रामीण कोई भी शुभ कार्य इन चमगादड़ों की पूजा किए बगैर नहीं करते हैं। बिहार के वैशाली जिला का यह गांव है सरसई (रामपुर रत्नाकर)। यहां इन चमगादड़ों को देखने के लिए पर्यटकों की भीड़ लगी रहती है।
बिहार के वैशाली जिले के राजापाकर प्रखंड में कए गांव है ‘सरसई’ (रामपुर रत्नाकर), जहां के लोग चमगादड़ों की पूजा करते हैं। वे मानते हैं कि चमगादड़ उनकी रक्षा भी करते हैं। मान्यता है कि चमगादड़ समृद्धि की प्रतीक देवी लक्ष्मी के समान हैं।[और पढ़े]
बौंसी का यह पहाड़ बयां करता है समुद्र मंथन की कहानी
बिहार के बांका जिले के ब्रह्मपुर पंचायत में बौंसी नामक एक स्थान है। जो प्रसिद्ध मंदार पर्वत की तराई में अस्थित है। मंदार का मतलब ही स्वर्ग होता है। अरबों साल पहले पुराणों में वर्णित मंदार पर्वतमाला आज भी सनातन संस्कृति की कहानी को बयान करता है।
पर्वत के तराई में स्थित यह पावन पवित्र तालाब अपने चमत्कारिक गुणों के कारण प्राचीन काल से प्रसिद्ध रहा है। मनोहारी वातावरण में बना यह जलाशय आज भी जनमानस के लिए कष्ट निवारण के कारण आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। इस जलाशय के बीच लक्ष्मी नारायण जी मंदिर का भव्य मंदिर बिराजमान है जिस कारण इस क्षेत्र को पाप हरणी लक्ष्मी नारायण मंदिर कहा जाता है।[और पढ़े]
Tuesday, November 20, 2018
मूंग के लड्डू :मगध के मिष्ठान्न की परंपरा
1775 के आसपास नजीर अकबराबादी अपनी कविता हमें अदाएं दिवाली की ज़ोर भाती हैं, में लिखते हैं कि मगध के मूंग के लड्डू से बन रहा संजोग, दुकां-दुकां पे तमाशे यह देखते हैं लोग| खिलौने नाचें हैं तस्वीरें गत बजाती हैं, बताशे हंसते हैं और खीलें खिलखिलाती हैं| जो बालूशाही भी तकिया लगाये बैठे हैं, तो लौंज खजले यही मसनद लगाते बैठे हैं| उठाते थाल में गर्दन हैं बैठे मोहन भोग| यह लेने वाले को देते हैं दम में सौ-सौ भोग|यह मगध के मिष्ठान्न की उस परंपरा का एक ऐतिहासिक आख्यान है जो यह बताता है कि मगध साम्राज्य में मिठाईयों का कितना महत्व रहा होगा|[और पढ़े]
बिहार के प्यार की मिठास : सीतामढ़ी के खीरमोहन
खीर मोहन शब्द सुनते ही मुंह में पानी जाता है| ऐसा स्वाद जो पूरे प्रदेश में और कहीं नहीं बल्कि सीतामढ़ी में बने खीरमोहन में ही है| प्रदेश भर में यहां की चुनिंदा दुकानों में बने इस मिठाई की जबरदस्त मांग है| त्योहार या विशेष अवसरों पर इसकी काफी खपत होती है और इन दिनों इसे पाने के लिए एडवांस बुकिंग करानी पड़ती है| यहां के खीर मोहन का स्वाद इतना लाजवाब है कि राजनेताओं से लेकर अफसरों की पसंद बने हुए हैं|[और पढ़े]
अदरी बहुरिया कटहर न खाय, मोचा ले पिछवाड़े जाये
कटहल भले हमारे पड़ोसी देश बांग्लादेश का राष्ट्रीय फल है लेकिन कटहल का फल जिसे कोवा भी कहते हैं उसमें ठेठ बिहारीपन बसा हुआ है| भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की पटना इकाई ने जो दो उन्नत प्रजातियां विकसित की है उसमें सब्जी के लिए स्वर्ण पूर्ति अौर पके फल (कोवा) के लिए स्वर्ण मनोहर प्रजाति के रूप में पूरे देश में पायी जाती है| देश में जहां केरल ने कटहल की सबसे प्रजातियां चिह्नित की है लेकिन उनका फोकस कटहल से बनने वाले आटे और अनाज पर ज्यादा केंद्रित है वहीं फल पर बिहार का एकाधिकार है जो सभी जगहों पर दिखायी देती है|[और पढ़े]
भागलपुरी कतरनी स्वाद और सुगंध की धनी
कतरनी चावल हो कतरनी का चूड़ा| इसके स्वाद और खुशबू को हर बिहारी अच्छी तरह से समझता है| स्वाद और सुगंध के धनी इस कतरनी को अब अंतरराष्ट्रीय पहचान मिल गयी है| भागलपुर के कतरनी धान को जियोग्राफिकल इंडिकेशन मिल गया है और इसी के साथ अब भागलपुरी कतरनी की खुशबू राष्ट्रीय स्तर पर फैलेगी|[और पढ़े]
Sunday, November 18, 2018
सुपौल के इस मंदिर में भीम ने की थी भोलेनाथ की पूजा
बिहार के सहरसा फारबिसगंज रेलखंड पर सुपौल जिला स्थित है। सुपौल जिला वर्तमान सहरसा जिले से 14 मार्च 1991 में विभाजित होकर अस्तित्व में आया। सांस्कृतिक रुप से यह काफी समृद्ध जिला है। नेपाल से करीब होने के कारण यह सामरिक रुप से काफी महत्वपूर्ण है।
सुपौल की स्थापना पाल वंश के शासकों दूारा की गई थी। क्षेत्रफल के अनुसार ये कोसी प्रमंडल का सबसे बड़ा जिला है। वीरपुर, त्रिवेणीगंज, निर्मली, सुपौल आदि इसके अनुमंडल है। पर्यटन स्थलों में गणपतगंज का विष्णु मंदिर, धरहरा का महादेव मंदिर, वीरपुर में कोसी बैराज, हुलास का दुर्दा महादेव मंदिर आदि प्रमुख है।[और पढ़े]
शेखपुरा: बिहार का मिनी तिरुपति मंदिर
शेखपुरा: 1 99 2 में शेखपुरा जिले के समस गांव में भगवान विष्णु की एक बड़ी मूर्ति खोजी गई थी और बिहार स्टेट बोर्ड ऑफ रिलिजनियस ट्रस्ट ने राज्य सरकार से आंध्र प्रदेश के प्रसिद्ध तिरुपति मंदिर के पैटर्न पर एक छोटा मंदिर बनाने का आग्रह किया ।
मूर्ति काले पत्थर से बना है और ऊंचाई 7.5 फीट और चौड़ाई 3.5 फीट है। यह मूर्ति गुप्ता काल से संबंधित है और पुराने गांव तालाब की खुदाई के दौरान उसे बरामद किया गया था। इसकी चार भुजाओं में एक सांख (शंख), एक चक्र ,एक गाडा और पद्मा (कमल) है। मूर्ति के बाएं और दाएं हाथों के नीचे — दो मूर्ति हैं — एक मर्दाना और एक और स्त्री।[और पढ़े]
मिथिला की यादें
मिथिला प्राचीन विदेह के एक प्रसिद्ध राजा मिथि से अपना नाम लेता है क्योंकि इस क्षेत्र को तब जाना जाता था। यदि कोई व्यक्ति इस खंड में चर्चा की गई मिथिला के विभिन्न स्थानों पर दौर करने वाले लोककथाओं द्वारा जाता है, तो रामायण और महाभारत के कई उपकथा इन हिस्सों में प्रकट हुए प्रतीत होते हैं।
संध्या दर्शन के समर्थक कपिल मुनी भी मिथिला से जुड़े परंपराओं द्वारा आयोजित किए जाते हैं।
कहा जाता है कि यह स्थान ‘बौवर-बंगा’ या बंगाल के गेटवे से अपना नाम प्राप्त हुआ है।[और पढ़े]
Saturday, November 17, 2018
क्या आप जानते है शाहाबाद का इतिहास ??
माना जाता है कि ‘शहर या सम्राट की भूमि’ का अर्थ शाहबाद को अफगानों पर उनकी जीत के बाद 15 9 2 में मुगल राजवंश संस्थापक सम्राट बाबर द्वारा क्षेत्र के अधीनस्थ होने के बाद अपना नाम मिला। नाम को बाद में सरकार को भी दिया गया था; अर्थात, मुगलों की राजस्व-प्रशासनिक इकाई है।
यह नाम 1787 में विलियम ऑगस्टस ब्रुक के संग्रह के तहत शाहबाद नाम से बने जिले के संबंध में आधिकारिक और सामान्य अनुपालन दोनों में जारी रहा, जो कि प्रशंसित लेखक विलियम डेलरीम्प्ले के प्रसिद्ध पुस्तक शीर्षक, ए व्हाइट मुगल की एक भारतीय महिला से शादी पर आधारित है|[और पढ़े]
हरिहरनाथ मंदिर: गंगा और गंधक नदियों का संगम
भक्ति, व्यापार, मस्ती और झुकाव का एक प्रमुख कॉकटेल — पूरे बिहार में धार्मिक त्यौहारों के दौरान पूजा के स्थानों के आसपास आम घटनाएं — गंगा के संगम पर हरिहरनाथ मंदिर के चारों ओर हरिहर-मंदिर मंदिर में हरिहर-क्षेत्र मेला द्वारा वर्णित है। और सोनपुर में गंडक नदियों।
माना जाता है कि मूल मंदिर भगवान राम द्वारा बनाया गया था जब वह राजकुमारी जानकी के स्वयंवर में भाग लेने के लिए जनकपुर जाने के रास्ते जा रहे थे। मंदिर की उम्र और उत्पत्ति ने विद्वानों को परेशान किया है, लेकिन ऐसा माना जाता है कि राजा सिंह ने इसे मरम्मत की। वर्तमान मंदिर मुगल काल के अंत तक एक प्रमुख महान पाटन के राजा राम नारायण द्वारा बनाया गया था।[और पढ़े]
यह जगह भक्त पवित्र डुबकी लेते हैं
मांझी: यह गोगरा या सरयू नदी के किनारे चपरा के 16 किमी पश्चिम में स्थित है। नदी संगम पर एक पुराने किले के अवशेष हैं, जो चेरो राजवंश के मंझी मक्का ने बनाया था। एक और सिद्धांत यह है कि राजा मल्लाह थे और शीर्षक ‘मंजजी’ के साथ-साथ किले की स्थिति इस सिद्धांत का पक्ष लेने लगती है। हालांकि, इस किले ने 1835 तक इसे महत्व में रखा।
सरयू के तट पर स्थित होने के कारण, इस जगह में धार्मिक पवित्रता भी है। इस स्थान पर कार्तिक पूर्णिमा पर एक बड़ा मेला होता है क्योंकि लोग साराउ नदी में पवित्र डुबकी लेते हैं।[और पढ़े]
Friday, November 16, 2018
क्या हुआ जब सात शेरों के साथ बैठे हुए माँ कामख्या मध्यरात्रि में दिखाई दी
गोपालगंज से 6 किमी दूर थवे में देवी दुर्गा को समर्पित मंदिर, दूर और दूर के लोगों द्वारा महान सम्मान में आयोजित किया जाता है। बड़े पैमाने पर भक्त, विशेष रूप से सोमवार और शुक्रवार को मंदिर को आते हैं।
स्थानीय लोगों का मानना है कि थवे में देवी आसाम से देवी कामख्या ही है। किंवदंती यह है कि 14 वीं शताब्दी में, चेरो राजा, राजा मानन सिंह थे, जो एक दुर्गा भक्त थे, जो बेहद घमंडी और संतों और अन्य धार्मिक व्यक्तियों के असहिष्णु थे। राहशु, एक अन्य दुर्गा भक्त जो हठवा में राजा के किले के पास रहते थे, जब वहा पे अकाल पड़ा तब उह्नोने देवी की प्रार्थना की । लेकिन शासक अकाल-प्रभावित लोगों से कर लेना लिए जारी रखा।[और पढ़े]
Thursday, November 15, 2018
कुशेश्वर अस्थान: एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थल केंद्र
कुशेश्वर अस्थान:
एक महत्वपूर्ण तीर्थ केंद्र, यह भगवान शिव मंदिर पूरे साल पूजा करने वालों को आकर्षित करता है। यह मंदिर, सिंघिया के पूर्व में 16 किमी पूर्व और पूर्वी मध्य रेलवे की समस्तीपुर-खगारिया शाखा रेखा पर हसनपुर रोड रेलवे स्टेशन के 22 किमी उत्तर पूर्व में स्थित है, इसकी उत्पत्ति महाकाव्य के लिए है।[ और पढ़े]
दरभंगा: झीलों का शहर
कर्णता राजवंश के नरसिम्हा देव के पुत्र रामसिम्हा देबवा को रामदीगी नामक एक बड़े तालाब और एक आकर्षक उद्यान रामबाग के उत्खनन के साथ श्रेय दिया जाता है। 1234–36 ईस्वी के बीच बिहार में तिब्बती यात्री धर्मस्वामी इस राजा से मिले थे। दरभंगा में मनाही तालाब को कर्णता वंश के राजा हरिसिमा देव (12 9 6–1323 सीई) द्वारा खुदाई गई थी। 13 वीं शताब्दी सीई के दूसरे छमाही में कर्णता राजवंश के गंगा देव के शासनकाल के दौरान दरभंगा रेलवे स्टेशन के पास गंगासागर तालाब खुदाई गई थी। [ और पढ़े]
Three Most Haunted Places in Darbhanga
Darbhanga metropolis has a very important place in Bihar in all aspects. Be it from the point of vacationer attraction or, financial importance or be it cultural values and old memories interrelated to exceptional places. Today, we’re going to dig up three most haunted locations in Darbhanga city that is rumoured to be haunted by malevolent spirits and/or faces multiple mysterious phenomenon. Please not palpitate at the same time as we take you on a pulsating adventure to those creepy points of interest in Darbhanga.[Read More]
छाप्रार : भगवान महादेव के मंदिर के लिए प्रसिद्ध
छाप्रार :बहादुरपुर ब्लॉक में स्थित, यह गांव कमला नदी के तट पर भगवान महादेव के मंदिर के लिए प्रसिद्ध है, जिसके आसपास कार्तिक और मगी पूर्णिमा के अवसर पर मेले आयोजित किए जाते हैं।[ और पढ़े]
Wednesday, November 14, 2018
बिहार की इन बेटियों के इशारे पर चलती है मालगाड़ी
बिहार की दो बेटियां जिन्हें चुनौतियां पसंद थीं, दोनों को नौकरी भी मिली एेसी कि पहले किसी ने ना की थी। दोनों की जब नौकरी लगी मालगाड़ी के गार्ड के तौर पर तो लोगों का कहना था अब बेटियां मालगाड़ी भी चला लेंगी। इन दोनों ने साबित कर दिखाया कि लड़कियां क्या नहीं कर सकतीं।
इस साल की 18 जुलाई को सैकड़ों निगाहें ताक रही थीं उन दोनों और गार्ड के उस डिब्बे को, जिस पर गार्ड की ड्रेस में सवार थीं दो युवतियां। [ और पढ़े]
बिहार का एक गांव जहां एक भी व्यक्ति साक्षर नहीं
एक तरफ हम चांद पर घर बसाने की बात करते हैं तो वहीं एक क्षेत्र ऐसा भी है जहां अभाव में लोग कंद-मूल खाकर गुजारा करते हैं। 120 लोगों के टोले में एक भी व्यक्ति साक्षर नहीं । रुपये की पहचान भी उसका रंग देखकर करते हैं। सरकार की कोई योजना आज तक यहां सिरे नहीं चढ़ी।
हम बात कर रहे हैं गया जिले के कठौतिया केवाल पंचायत के बिरहोर टोले की। प्रखंड से 15 किलोमीटर दूर जंगल में बसे बिरहोर जाति के लोग आज भी उपेक्षित हैं। बिहार में विलुप्ति की कगार पर पहुंच चुके इस जाति के लोगों के विकास के लिए सरकार ने पहल तो की पर अपेक्षा से काफी कम। [ और पढ़े]
डुमरांव के राजेश्वर मंदिर में स्थित सूर्यदेव बनें आस्था का केंद्र
डुमरांव के चारों दिशा में ऐतिहासिक व प्राचीन मंदिर मौजूद है| इस क्रम में छठिया पोखरा से अनुमंडल कार्यालय जाने वाले मार्ग पर प्राचीन राजेश्वर मंदिर हर व्यक्ति को आर्कषित करता है| मंदिर में रामजानकी, शिव परिवार, गणेश जी, मां दुर्गा और इस मंदिर में जिले का एकलौता सूर्यदेव की प्राचीन प्रतिमा मौजूद है.|मंदिर वर्षो से बंद रहा| लेकिन 2009 में इसमें लोगों का आवागमन शुरू हुआ| इस मंदिर का निर्माण श्री 108 मती महारानी वेणी प्रसाद कुमारी ने संवत 1856 में कराया है|[ और पढ़े]
Tuesday, November 13, 2018
बड़गांव सूर्य मंदिर: यहां नहाने से मिलती है कुष्ठ रोग से मुक्ति
नालंदा का प्रसिद्ध ओंगारी और बड़गांव के सूर्य मंदिर देश भर में प्रसिद्ध हैं। माना जाता है कि बड़गांव सूर्यमंदिर की स्थापना दूापर युग में हुई थी। भगवान कृष्ण के पुत्र राजा साम्ब का कुष्ठ रोग यही मिले जलस्रोत के पवित्र जल से ठीक हो गया था। राजा साम्ब ने इस स्थल की खुदाई कराई तो भगवान सूर्य की मूर्ति मिली, जो सात घोड़े के रथ पर सवार, रथ के दोनों तरफ कमल का फूल और बीच में सूर्यदेव के भाई श्यमदित, बांयी ओर कल्पादित ,दाहिनी ओर माता अदिति की प्रतिमाएं मिली जो आज मंदिर में स्थापित है[ और पढ़े]
एक चिता पर बना दरभंगा का श्यामा काली मंदिर
बिहार के दरभंगा जिले में बहुत सारे मंदिर है उन्ही मंदिरों में एक रामेश्वरी श्यामा काली मंदिर है। इस काली मंदिर का अपना अलग ही पहचान है। मां के इस मंदिर को भक्त लोग श्यामा माई के नाम से पुकारते हैं।
इस मंदिर के निर्माण की कहानी बहुत ही अलग है। लोगों की मान्यता है कि मां काली का यह मंदिर दरभंगा राज परिवार के महान साधक महाराज रामेश्वर सिंह की चिता पर बना है। इस मंदिर के अंदर दक्षिण दिशा की ओर एक खास स्थान पर आज भी लोग साधक महाराज रामेश्वर सिंह के चिता की तपिस को महसूस करते हैं, फिर चाहे कड़ाके की ठंड ही क्यों न पड़ रही हो।[ और पढ़े]
क्यों लगाती हैं महिलाएं छठ पर इतना लंबा सिंदूर ??
चार दिनों तक चलने वाला छठ व्रत दुनिया के सबसे कठिन व्रतों में से एक है| स्त्रियां अपने सुहाग और बेटे की रक्षा करने के लिए भगवान सूर्य के लिए 36 घंटों का निर्जला व्रत रखती हैं| वहीं, भगवान सूर्य धन, धान्य, समृद्धि आदि प्रदान करते हैं|
छठ पूजा में सुहाग की रक्षा के लिए स्त्रियां बड़ी निष्ठा और तपस्या से व्रत रखती हैं| सिंदूर और सुहाग का रिश्ते के बारे में हम सभी को पता है| फेरों के समय वधू की मांग में सिंदूर भरने का प्रावधान है| विवाह के पश्चात ही सौभाग्य सूचक के रूप में मांग में सिंदूर भरा जाता है| छठ पूजा में भी महिलाओं को माथे से लेकर मांग तक लंबा सिंदूर लगाए हुए देखा जाता है| इसके पीछे एक खास वजह है|[ और पढ़े]
Monday, November 12, 2018
जानिए छठ पूजा का वैज्ञानिक महत्व
छठ पूजा चार दिवसीय उत्सव है। इसकी शुरुआत कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को होती है और समापन कार्तिक शुक्ल सप्तमी को। छठ व्रती लगातार 36 घंटे का निर्जला उपवास रखते हैं। इस व्रत में शुद्धता पर बहुत अधिक ध्यान दिया जाता है, जिससे इसे कठिन व्रतों में एक माना जाता है। इस बार छठ का यह पर्व 11 नवंबर को नहाय-खाय से शुरू हो गया है और 14 नवंबर को समाप्त होगा।
छठ पूजा वास्तविक रूप में प्रकृति की पूजा है। इस अवसर पर सूर्य भगवान की पूजा होती है, जिन्हें एक मात्र ऐसा भगवान माना जाता है जो दिखते हैं। अस्तलगामी भगवान सूर्य की पूजा कर यह दिखाने की कोशिश की जाती है कि जिस सूर्य ने दिनभर हमारी जिंदगी को रौशन किया उसके निस्तेज होने पर भी हम उनका नमन करते हैं। छठ पूजा के मौके पर नदियां, तालाब, जलाशयों के किनारे पूजा की जाती है जो सफाई की प्रेरणा देती है। यह पर्व नदियों को प्रदूषण मुक्त बनाने का प्रेरणा देता है। इस पर्व में केला, सेब, गन्ना सहित कई फलों की प्रसाद के रूप में पूजा होती है जिनसे वनस्पति की महत्ता रेखांकित होती है।[और पढ़े]
छठ पूजा पौराणिक कथाएं
हिंदुओं के लिए सभी त्योहारों का विशेष महत्व होता है और हर त्योहार को मनाने के पीछे पौराणिक महत्व और कथाएं होती हैं। इसी प्रकार आस्था के महापर्व के पीछे भी कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। यह त्योहार विशेष रूप से बिहार, पूर्वांचल, झारखंड आदि क्षेत्रों में विशेष धूमधाम के साथ मनाया जाता है। मुख्य रूप से यह त्योहार बिहार की अस्मिता से जुड़ा पर्व है। आइए जानते हैं कैसे हुई इसकी शुरुआत और क्या हैं पौराणिक कथाएं..[और पढ़े]
Monday, November 5, 2018
Branches of Buddhism
Over the centuries, major branches of Buddhism emerged: a transmission that traveled to Southeast Asia, and a transmission that evolved in East Asia. A similarly offshoot of the northern transmission also evolved. All three branches commenced in India, and advanced further as they moved throughout Asia.
Theravada Buddhism
Theravada is assumed to be the oldest form of Buddhism. The time period itself comes into use later, but the Theravada culture upholds the monastic direction and adheres to the oldest surviving recorded sayings of the Buddha, together called the Pali canon. These original texts have been set down within the Pali language by way of clergymen in Sri Lanka in the first century C.E. Prior to this codification, teachings were transmitted orally, and relate to arose that authentic texts ought to be preserved in light of the growing heterodoxy that changed into developing in India.
Theravada acknowledges the primacy and humanity of the historic Buddha. The Buddha become an exemplary figure. Enlightenment is an arduous work, available simplest to monks who explicitly pursue the course of Shakyamuni himself. Theravada is the dominant form of Buddhism these days in Sri Lanka as well as Burma, Thailand, Laos, and Cambodia. The subject depend of Buddhist artwork from these traditions makes a speciality of lifestyles occasions of the Buddha.
Mahayana Buddhism
Mahayana is a philosophical move that proclaimed the opportunity of universal salvation, imparting assistance to practitioners in the form of compassionate beings referred to as bodhisattvas. The aim was to open up the possibility of buddhahood (becoming a Buddha) to all sentient beings. The Buddha ceased to be without a doubt a ancient figure, but as an alternative was interpreted as a transcendent figure who all may want to aspire to become.
New sutras (texts) had been added to the Buddhist canon, causing rifts a number of the numerous sects. Reformers known as themselves the “greater vehicle” (Mahayana), and they categorised the traditionalists the “lesser vehicle” (Theravada). The bodhisattva developed as an enlightened being who postpones his own salvation so as to help others. Initially understood as partners to the Buddha, bodhisattvas are spiritual beings who compassionately vow to attain buddhahood, however have deferred this aspiration as a way to free up all creatures inside the universe from struggling. The most famous bodhisattvas performing in sculpture and portray consist of Avalokiteshvara (bodhisattva of mercy and compassion), Maitreya (the destiny Buddha), and Manjushri (bodhisattva of expertise).
Mahayana additionally spread to Southeast Asia, but its best impact is felt in the East Asian countries of China, Korea, and Japan. As Mahayana developed, it persevered to expand a substantial pantheon of buddhas, bodhisattvas, and other divine and semi-divine beings, drawing from and assimilating local and nearby traditions.
Tantric Buddhism: an addition evolution of Mahayana Buddhism
Tantric or Esoteric Buddhism, every now and then called Vajrayana (the Vehicle of the Thunderbolt), developed about 500–six hundred C.E. In India. An offshoot of Mahayana Buddhism, the origins of Tantric Buddhism can be traced to historical Hindu and Vedic practices as well, including esoteric ritual texts designed to gain physical, intellectual, and religious breakthroughs. Tantric Buddhism is also defined as presenting a shortcut to enlightenment. Because some practices subverted mainstream Buddhism and Hinduism, engaging in acts otherwise considered taboo, its practitioners have been secretive. Initiates worked closely with a spiritual guide or guru.
Vajrayana Buddhism is most carefully diagnosed with Tibetan Buddhism, however, it additionally motivated components of Southeast Asia and East Asia. Buddhism thrived in India for extra than a millennium, attaining an expansive fruits inside the Pala length in jap India. By the 1100s C.E., Buddhism had declined in particular because of Muslim incursions.
Before this time, but, Buddhist doctrine were transmitted to Sri Lanka, which became a in addition point of reference for the spread of Buddhism to Southeast Asia. Travelers and missionaries carried the message of Buddhism by using sea and land routes through Central Asia into China by the first century C.E., Buddhism flourished in China between 300 and 900 C.E. And provided a factor of reference for Buddhism as it evolved in Korea and Japan. Chinese translations of Indian texts contributed to the growth of printing.
Buddhism is still robust nowadays in Japan, Cambodia ,Laos, Korea, Nepal, Sri Lanka, Burma, , Tibet, Vietnam, Thailand and Bhutan. Throughout its records and transmission, Buddhism has been very adaptable to neighborhood belief and customs, and the combination of those local forms with imported beliefs and emblems is a characteristic of Buddhist art during Asia.
Thursday, November 1, 2018
Patna collectorate was the Dutch traders' warehouse
In Bihar, there are marks of the Dutch come to commercial enterprise within the 17th century, nevertheless in Bihar. From the Patna to the Chapra, the Dutch traders’ warehouse, the constructing with surprising structure constructed with the aid of them, the graveyards are such that the European tourists may be tempted. Dutch merchants commonly used to alternate spices, clothes, uncooked silk, glass, rice and opium from India.[Read More]
Interesting tea history of Bihar
Everyone knows approximately Tea of Assam and Darjeeling however Kishanganj and Katihar are brands of Bihar Tea. Tea cultivation in Bihar become first delivered in half of the hectare land in Kishanganj district in 1982. Due to speedy and growth, tea cultivation is being carried out on 50 acres of land. Currently, about 10 tea refining machines are hired in Kishanganj-Katihar. From here, India’s general tea production is two per cent.[Read More]
पतेसर शरीफ में पूरी होती हर दुआ
बिहार हमेशा से ही सूफी-संतों की कर्म और साधना स्थल रहा है| यहाँ सूफी-संतों ने मानव मन को वैचारिक पवित्रता प्रदान करने के लिए आध्यात्मिकता की अविरल धारा प्रवाहित की है. कैमूर की पावन धरती को सूफी-संतों ने चिंतन, मनन और आस्था को केंद्र एवं अपनी कर्मस्थली बनाया| हजरत बाबा खलील शाह चिश्ती साबिरी जैसे महान सूफी-संत ने भभुआ में अपने उपदेशों से दुनिया भर के लोगों के दिलों में इंसानियत, मोहब्बत, दयालुता और विनम्रता से समाज की सेवा करने का जज्बा जगाया|[और पढे]
Subscribe to:
Posts (Atom)